कैसे करूं श्रंगार
शीर्षक:- कैसे करूं श्रंगार
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सावन का महिना आया पर पिया नहीं आये।
कैसे करूं श्रंगार कि मेरा दिल भी घबड़ाए।।
अंखियां दर्शन को तरस रही हैं हर पल राह निहारें।
मैं भी द्वार पे खड़ी सोचती आ जायें प्रियतम प्यारे।।
मेघ भी छम छम बरस रहे हैं शीतल भई धरा की छाती।
छः महीनों से आई भी नहीं प्रियतम की कोई भी पाती।।
शीतल मन्द बयार दे रही, प्रियतम के आने का सन्देश।
बिन उनके मैं यहां पे तड़पूं प्रियतम तड़पे हैं विदेश।।
प्रियतम अब तेरी याद सताती मैं विमूण हो जाती हूं।
केवल आने के दिन गिनती हूं छत से बातें कर पाती हूं।।
यही सोचती हूं मैं हरपल काश सजन आ जाते।
मैं सोलह श्रंगार सजाती वो बाहुपाश में बंध जाते।।
मोह छोड़ दो अब विदेश का अपनी धरती भी रोती है।
तेरे बिन प्रियतमा तुम्हारी रातों को नींद ना सोती है।।
बिना तुम्हारे नयनों से झरना हरपल झरता रहता।
धड़कन भी रुक जाती है दिल रुक रुक कर है चलता।।
सावन माह सुहाना लगता पति की बांहों का हार मिले।
साथ तुम्हारे झूला झूलूं पैंगों के संग तेरा प्यार मिले।।
सावन माह में वसुन्धरा भी सुन्दर श्रंगार किया करती।
चूनर धानी पहन के तन में सुमनों के संग वो है सजती ।।
स्वरचित:- विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर
Shashank मणि Yadava 'सनम'
13-Jul-2023 11:09 AM
बेहतरीन अभिव्यक्ति और खूबसूरत भाव
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पृथ्वी सिंह बेनीवाल
07-Jul-2023 06:16 PM
👏👌
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